दाना-पानी रखें, लगायें घोंसला (बॉक्स) और पेड़, होगी गौरैया की घर वापसी इन्सान की दोस्त है गौरैया संजय कुमार, उपनिदेशक,पीआईबी,पटना
1 min readगौरैया संरक्षण आखिर क्यों है ज़रूरी?
छोटे आकार वाली खूबसूरत गौरैया पक्षी का जिक्र आते ही बचपन की याद आ जाती है। कभी इसका बसेरा इंसानों के घर-आंगन में हुआ करता था। लेकिन पर्यावरण को ठेंगा दिखाते हुए कंक्रीट के जगंल में तब्दील होते शहर और फिर गांव ने इन्हें हमसे दूर कर दिया है। एक वक्त हुआ करता था जब हर घर-आँगन में सूप से अनाज फटका जाता था तो फटकने के बाद गिरे अनाज को खाने, गौरैया फुर्र से आती थी और दाना खा कर फुर्र से उड़ जाती थी। हम बचपन में इस पकड़ने की कोशिश करते हुए खेला करते थे। टोकरी के नीचे चावल रख इसे फंसाते और पकड़े के बाद गौरैया पर रंग डाल कर उड़ा देते। जब दूबारा वह आती थी, तो उसे पहचान कर मेरी गौरैया कह चहकते और खुश होकर ताली बचा कर उसका स्वागत करते थे।
अमूमन गौरैया हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो से जानी-पहचानी जाती है, लेकिन इनमें हाउस स्पैरो को घरेलू गौरैया कहा जाता है। यह गाँव और शहरों में पाई जाती हैं। इन्सान ने जहाँ भी घर बनाया देर सबेर गौरैया जोड़ा वहाँ रहने पहुँच ही जाती हैं। गौरैया छोटे पास्ता परिवार की पक्षी है। आंकडे बताते हैं कि विश्व भर में घर-आंगन में चहकने – फूदकने वाली छोटी सी प्यारी चिड़िया गौरैया की आबादी में कमी आई है।
गौरैया इंसान का करती है अनुसरण!!
वैज्ञानिक अध्ययनों की बात करें तो यह प्रमाणित हुआ है कि घरों में रहने वाली गौरैया सभी जगहों पर इंसान का अनुसरण करती हैं और जहां पर इंसान नहीं रहते हैं, वे वहां पर नहीं रह सकती हैं। बेथलहम की एक गुफा से 4,00,000 साल पुराने जीवाश्म के साक्ष्य से पता चलता है कि घरों में रहने वाले गौरैयों ने प्रारंभिक मनुष्यों के साथ अपना स्थान साझा किया था। रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंसानों और गौरैयों के बीच का बंधन 11,000 साल पुरानी बात है और घरेलू गौरैया के स्टार्च-फ्रेंडली होना हमें अपने विकास से जुड़ी कहानी को बताती हैं।
गौरैया की संख्या में कमी के पीछे हैं कई कारण
गौरैया की संख्या में कमी के पीछे कई कारण हैं जिन पर लगातार शोध हो रहे हैं। गौरैया की संख्या में कमी के पीछे के कारणों में बढ़ता आवासीय संकट, आहार की कमी, खेतों में कीटनाशक का व्यापक प्रयोग, जीवनशैली में बदलाव, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, शिकार, गौरैया को बीमारी और मोबाइल फोन टावर से निकलने वाले रेडिएशन को दोषी बताया जाता रहा हैं।
बढ़ता आवासीय संकट यानि एक पर्यावास का नुकसान है। गौरैया को घोंसला बनाने, खिलाने और बसेरा करने के लिए विशिष्ट प्रकार के आवासों की आवश्यकता होती है और इन आवासों को नष्ट किया जा रहा है। गौरैया के प्रजनन के लिए अनुकूल आवास में कमी भी इसकी संख्या में कमी का एक बड़ा कारण माना जा रहा है। खपरैल/फूस के आवासों का तेजी से कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होने से तस्वीर बदल गयी है। शहरों में इनके प्रजनन के लिए अनुकूल आवास नहीं के बराबर है।
यही वजह है कि एक ही शहर के कुछ इलाकों में ये दिखती है तो कुछ में नहीं। गौरैया संरक्षण में जुड़े लोग कृत्रिम घर बना कर गौरैया को प्रजनन के लिए आवास देने कि पहल चला रहे हैं। इसमें गौरैया अंडे देने के लिए आ भी रही है। कई गाँव में यह संकट ज्यादा नहीं है, फूस और मिट्टी के आवास अभी भी हैं। शहरीकरण, कृषि और औद्योगिक विकास सभी ने गौरैया के आवासों के नुकसान में योगदान दिया है। आहार की कमी / कीटनाशक का व्यापक प्रयोग प्रमुख कारक है जिसके कारण गौरैया की आबादी में गिरावट आई है। कीटनाशक सीधे तौर पर गौरैया को मार कर या अप्रत्यक्ष रूप से, उनके खाद्य स्रोतों की उपलब्धता को कम करके प्रभावित कर सकते हैं। गौरैया अपने शिकार के माध्यम से कीटनाशकों के संपर्क में भी आती हैं, जो उनके शरीर में जमा हो सकते हैं और गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं। गौरैया की आबादी में गिरावट में जलवायु परिवर्तन की भी भूमिका है। गौरैया तापमान और वर्षा में परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होती हैं, और उनके प्रजनन और प्रवास के पैटर्न को चरम मौसम की घटनाओं से बाधित किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन से उनके खाद्य स्रोतों के वितरण,प्रचुरता,तापमान और वर्षा में परिवर्तन से उनकी आबादी में गिरावट आ सकती है।
एक वक्त हुआ करता था जब हर घर-आँगन में सूप से अनाज फटका जाता था, तो फटकने के बाद गिरे अनाज को खाने, गौरैया फुर्र से आती थी और दाना चुग कर फुर्र से उड़ जाती थी। हालांकि आज भी कई घरों में गौरैया आ रही है। कहीं इसका संरक्षण हो रहा है, तो कहीं नहीं। पैकेट बंद खाना, बाग़-बगीचा का नाश हो चुका है। पहले हर घर के आगे पीछे बाग़–बगीचा होता था। जहाँ झुरमुट वाला, नीबू, शमी अनार आदि का पेड़ होते थे जिस पर उनका आवास होता था। दिनों दिन बढ़ते वायु और ध्वनि प्रदूषण से गौरैया को नुकशान हो रहा है । गौरैया की आबादी में गिरावट का एक और कारण शिकार है। गौरैया का शिकार विभिन्न प्रकार के जानवर करते हैं, जिनमें शिकारी पक्षी, सांप और स्तनधारी शामिल हैं। वे घोंसले के शिकार के लिए भी असुरक्षित हैं, जो तब होता है जब उनके अंडे या चूजों को शिकारियों द्वारा ले लिया जाता है। कहीं कहीं पर बहेलिये शिकार कर रहे हैं। गौरैया के लिए एक और खतरा बीमारी भी है। गौरैया एवियन इन्फ्लूएंजा, वेस्ट नाइल वायरस और साल्मोनेलोसिस बीमारियों से प्रभावित हो सकती हैं।
मोबाइल फोन टावर और गौरैया
मोबाइल फोन टावर से निकलने वाले रेडिएशन को भी गौरैया के संख्या में कमी करने वाला एक बड़ा कारक माना जाता रहा है। लेकिन स्टेट ऑफ इंडियंस बर्ड्स 2020- रेंज, ट्रेंड्स और कंजर्वेशन स्टेट्स ने अपने रिपोर्ट के पेज संख्या छह पर साफ-साफ कहा है कि गौरैया की संख्या में कमी के तथ्य में मोबाइल फोन टावर का जो तर्क दिया जाता रहा है उसे लेकर कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है, जिससे यह पता चले कि रेडिएशन से गौरैया के प्रजनन पर प्रभाव पड़ता हो ? यानि यह भ्रम है कि मोबाइल फोन टावर से गौरैया के प्रजनन को खतरा होता है। फिर भी अगर किसी को लगता है कि मोबाइल फोन टावर से निकलने वाले रेडिएशन प्रभाव डाल रहा है तो आप दूरसंचार मंत्रालय के वेबसाइट पर जाकर शिकायत किया जा सकता है।
25 साल से गौरैया की संख्या भारत में स्थिर बनी हुई
हालांकि देश के छह मेट्रो बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में इनकी संख्या में कमी देखी गई है लेकिन बाकी के शहरों में इसकी संख्या स्थिर देखी जा रही है। ऐसे में कहा जा सकता हैं कि भारत में यह विलुप्त नहीं है। लेकिन, स्थिति ठीक भी नहीं है। कई शहर और गाँव से गायब या पलायन कर चुकी है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले 25 साल से गौरैया की संख्या भारत में स्थिर बनी हुई है। हालाँकि, इसके संरक्षण के प्रति जागरूकता को लेकर दिल्ली सरकार ने 2012 और बिहार सरकार ने 2013 गौरैया को राजकीय पक्षी घोषित कर रखा है।
संरक्षण का सवाल हर वर्ष 20 मार्च को ‘विश्व गौरैया दिवस’ के दिन सामने आता हैं। गौरैया इन्सानों की दोस्त है तो किसानों की मददगार है। गौरैया इंसान के साथ रहते हुये उन्हें सुख–शांति प्रदान करती हैं। खेत-खलिहान-फल-फूल–सब्जी में लगने वाले कीड़े–मकोड़ों से फसलों की ये रक्षा करती है। लेकिन, हमने ही इसे अपने से दूर कर दिया है। हालात यह है कि यह कहीं दिखती है, कहीं नहीं। एक शहर में है, दूसरे में नहीं। एक गाँव में है, दूसरे में नहीं। एक मुहल्ले में है दूसरे में नहीं हैं। ऐसे में गौरैया कहती है अभी मैं जिन्दा, अस्तित्व खतरे में है, करो पहल मुझे बचाने की, है वायदा घर-आँगन में चहचाहट से भर दूंगी खुशियाँ।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने 2002 में इसे लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल कर दिया था। गौरैया, गिद्ध के बाद सबसे संकट ग्रस्त पक्षी में से है। बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से जुड़े प्रसिद्ध पर्यावरणविद मोहम्मद ई दिलावर ने 2008 से गौरैया संरक्षण शुरु की थी। आज यह दुनिया कई देशों तक पहुंच गयी है। वैसे गौरैया से विश्व को प्रथम परिचय 1851 में अमेरिका के ब्रूकलिन इंस्टीट्यूट ने कराया था।
कुछ लोग घरों में दाना-पानी इसलिये नहीं रखते कि जब ये आती है तो इसके साथ कबूतर आदि चिड़िया भी आने लगती हैं और वे गंदा फैला देती हैं। कई लोग गिले कपड़े को सूखने डालते हैं तो चिड़िया कपड़ों पर बैठ जाती है और गन्दा कर देती हैं। देखा जाए तो लोगों के जीवन में काफी बदलाव भी आया है। बहुमंजली इमारत हो या आम भवन, खुले हिस्से या बालकोनी को लोग शीशे से पैक करवा देते हैं। यह खतरनाक होता है, गौरैया उड़ते हुये आती है और शीशे से टकरा जाती है या फिर उसमें अपनी परछाई देख उस पर चोंच मारती है उसे लगता है वहाँ दूसरी गौरैया है और ऐसे में वह घायल हो जाती है ।
गौरैया कई पारिस्थितिक तंत्रों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और बीजों के फैलाव और कीट नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गौरैया संरक्षण का अलख राजकीय पक्षी घोषित राज्य दिल्ली और बिहार सहित पूरे भारत में जोर-शोर से चल रहा है। यही वजह है कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक गौरैया को देखा जा सकता है। पिछले कई सालों से गौरैया संरक्षण में लगे लोग, सरकारी-गैर सरकारी संस्थान, एनजीओ सहित हर आम और खास लोग, गौरैया फ़ोटो प्रदर्शनी, पेंटिंग प्रतियोगिता, दाना घर, घोंसला, पानी का बर्तन वितरण के साथ साथ जागरूकता अभियान से गौरैया की घर वापसी कराई हैं। देशव्यापी जागरूकता से गौरैया की घर वापसी होती दिख रही है। लोगों ने यह पहल दाना-पानी रखने, घोंसला (बॉक्स) लगाने और नन्ही सी जान गौरैया को थोड़ा सा प्यार देकर पूरा किया है। गौरैया ने भी वायदा निभाया है और लोगों के घर-आंगन, बालकनी, छत पर आकर अपनी चहचाहट से अपनी वापसी का अहसास करा दिया है।
गौरैया संरक्षण का अलख जागने से फायदा यह हुआ कि दूसरी चिड़ियों का भी संरक्षण होने लगा। दाना पानी रखने और बॉक्स लगाने से दूसरी चिड़िया भी आने – दिखने लगी। बहरहाल, जब तक लोग इस मुहिम से नहीं जुड़ेंगे तब तक पक्षियों को लाभ पहुंचाना संभव नहीं हो पाएगा। यकीन मानिए जब आप अपने बर्तन से उनको पानी पीते हुए और आपके लगाये पेड़ – बॉक्स पर चिड़िया आएगी तो उसे देखेंगे और फिर आपको बहुत आत्मिक शांति मिलेगी। तो आइये, ओ री गौरैया को बचाएं रखे दाना-पानी, लगायें घोंसला (बॉक्स) और पेड़।
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लेखक- संजय कुमार, उपनिदेशक,पीआईबी,पटना एवं गौरैया संरक्षण में सक्रिय
मो-9934293148
अकबर ईमाम एडिटर इन चीफ