October 30, 2024
एक ऐसी शख्सियत ने पीके के साथ मिलाया हाथ जिससे बदल जाएगी पुरी बिहार की राजनीति समीकरण #prashantkishor #nda
#hindustannews18 #bihar #politics
Go Gorgeous Unisex Salon & Boutique
एक ऐसा राजनेता जिसने PK से हाथ मिला कर बिहार के राजनीति में कर दिया बड़ा खेला | Jan Suraj

शरीर का अंत मृत्यु नहीं होती – आकांक्षा कुमारी

1 min read

बड़े अरमानों को लेकर घरों को छोड़ आयें, सीखने मौत को यमराज से छीन लेने की कलाएँ, धरती का भगवान सुनती रही हूँ इस कौम को, हो गई फिर ज़िद्द हावी मुझपर भी भगवान बनने को, बायोकेमिस्ट्री, फिजियोलॉजी के साथ मेरी पसंदीदा एनाटॉमी पढ़ने को, एनाटॉमी ने मुझे बताया कि जो दिखता है शरीर, वो केवल बाहरी संरचना है, ये तो ख़ूबसूरती ने छिपा रखी है उस गूढ़ रहस्य को, आँखों से दिलों तक उतरने की बातें सुनी हमने भी थी, लेकिन एनाटॉमी को समझने के बाद ये केवल हार्मोनल बातें लगी, अमूमन हमने मुर्दों को निष्प्राण देखा था, हर बात में सुनते थे कि मृत शरीर किसी काम की नहीं होती, आओ मेडिकल की पढ़ाई करने, वहीं मृत शरीर आपको जीवन दे जाएगी, अचंभित होती थी कि आख़िर ये लाशें आती कहाँ से हैं?

पता चला कि इनके बग़ैर मेडिकल की पढ़ाई संभव ही नहीं, मुर्दों से डरते हैं सभी, हम रोज़ बिताते हैं उनके साथ ख़ुशनुमा समय, घंटों उन निष्प्राण मांस के शरीर को कुरेदते हैं, उन्हें चीरते हैं और वो आह भी नहीं भरते, उनके परिजनों का धन्यवाद जो हमारी पढ़ाई को सौंप जाते हैं इन्हें, वरना कैसे संभव हो पाती एनाटॉमी की कक्षाएँ, सोचो ये भी तो लाशें किसी के रिश्तेदार रहे होंगे, ये मर्चरी में ठंड़े पड़े रहते हैं किसी रिश्ते की गर्माहट से दूर, क्योंकि इनके परिजन अर्थ के अभाव में अंत्येष्टि न करने को हो जाते हैं मजबूर, एक दिन आया लेने का विशेष कैडेवरी ओथ, लाशें ढँकी थी झक सफ़ेद चादरों के ओट, हम सभी भी पहुँचे पहने अपने नये सफ़ेद कोट, उत्साहित होकर गले में लटकायें अपने स्टेथोस्कोप, जिन लाशों को किसी ने पहचानने से किया था इनकार, वो लाशें पड़ी थी वें हमारे सामने निष्ठुर और निष्प्राण, फ़ॉर्मेलिन में लिपटे उनके शरीर अब हमें सिखायेंगी, वो मर के भी अमर हो जाएँगे, बग़ैर बताएँ अपनी पहचान, हम पढ़-लिखकर जब भी डॉक्टर बनेंगे, देंगे धन्यवाद उन गुमनाम लाशों को, जिन्होंने मर कर भी सीखा दी हमें ज़िंदगी देने की कला, उनकी शरीर को चीरते हमने अपनी भावनाओं को मार दिया, अब मरीज़ों का शरीर और उनके मर्ज़ को दूर करना हमारी नैतिकता हो गई, लोग कहते हैं कि मानवीय संवेदनाओं के लिए कहाँ रह गयी है अब जगह, आओ कभी हमारी जिन्दगी जीकर देखो, देखो हमारी आँखों के सपने, पढ़ने के साथ रोज नये संघर्षों से जूझते, बीमार पड़े लोगों के साथ खुद को सम्भाले, उनकी और परिजनों की खुशियों के लिए खुद को समेटे, भावनाओं को किनारे कर जिम्मेदारियों को लपेटे, वो पहली लाश अब भी याद आती है, शरीर का अंत मृत्यु नहीं होती है, हमारी एनाटॉमी की कक्षायें उस मृत शरीर को भी दुआएँ दे जाती है…

आकांक्षा कुमारी एमबीबीएस द्वितीय वर्ष, नारायण मेडिकल कॉलेज एवं रिसर्च सेंटर, पनकी, कानपुर, उत्तर प्रदेश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed