97 साल पुरानी संसद भवन का आज आखिरी दिन, नई संसद भवन आखिर क्यों बनवाना पड़ा
कल से पुराना संसद भवन इतिहास बन जाएगा। भवन 97 साल पुराना है। 28 मई को पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन किया जा चुका है
पुराने संसद भवन का आज आखिरी दिन है। या यूं कह लें कि विगत 96 वर्ष पूर्व अंग्रेजों द्वारा निर्मित हिंदुस्तान की इबादत लिखने वाली इस इमारत की विदाई है।
सन 1911 में ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम ने भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली में शिफ्ट करने का ऐलान किया था। दिल्ली के बीच निर्मित इस इमारत का आज 18 सितंबर को आखिरी दिन है। इस राजधानी को डिजाईन करने की जिम्मेदारी उस समय के मशहूर आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर को दी गई। इसी दौरान एक काउंसिल हाउस की कल्पना की गई जो भारत की संसद बनी।
कुल 83 लाख रुपए की लागत से बनी इस इमारत में 27 फीट लंबे 144 सैंडस्टोन के खंभे बनाये गए। पत्थर और मार्बल को शेप देने के लिए 2500 राज मिस्त्री ने अपना योगदान दिया। लगभग 6 साल बाद 1927 में जब यह इमारत बनकर तैयार हुआ, तो पूरी दुनिया में आर्किटेक्चर का एक नया नमूना देखने को मिला।
उसके बाद से अब तक कई छोटी बड़ी घटनाएं और ऐतिहासिक कहानी इस संसद भवन से जुड़े हुए हैं। और पिछले सात दशकों में कई बड़े बदलाव हुए।
अब सवाल यह उठता है कि नई संसद भवन की जरूरत क्यों पड़ी! बता दें कि काउंसिल हाउस बनाते वक्त यह नहीं सोचा गया था कि यहां से इतना बड़ा लोकतंत्र चलेगा। अधिक सांसद होने की वजह से यह जगह संकरी हो गई थी। तकरीबन एक सदी पुराने इस संसद भवन की स्टेबिलिटी को लेकर सवाल खड़े हो रहे थे। पुरानी इमारत का कम्युनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर पुराना पड़ गया था जिसे आधुनिक बनाने की जरूरत थी।
इसलिए नए संसद भवन का निर्माण किया गया और आज पुराने सांसद का आखिरी दिन था।
अब भारत का इतिहास लिखने वाला पुराना संसद भवन अब खुद इतिहास बनेगा